“अपने हिस्से का युद्ध” स्त्रियों के जीवन की विषमताओं से उपजे संघर्षों को उजागर करती है : डॉ रूप रेखा वर्मा
आकाशगंगा’ न्यास की अध्यक्ष शीला पांडे की नव प्रकाशित पुस्तक अपने हिस्से का युद्ध (स्त्री विमर्श) का हुआ विमोचन,”शीला ने स्त्री-विमर्श की नई अवधारणा प्रस्तुत की है”
“यह पुस्तक आज के समय और परिस्थितियों में एक चुनौती है”
“स्त्री विमर्श के नये आयामों और मनोविज्ञान को समेटती है ये पुस्तक
लखनऊ : (NNI 24) चर्चित लेखिका एवं साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था ‘आकाशगंगा’ न्यास की अध्यक्ष शीला पांडे की नव प्रकाशित पुस्तक अपने हिस्से का युद्ध (स्त्री विमर्श) पर एक परिचर्चा गोष्ठी का आयोजन कैफ़ी आज़मी एकेडमी के सेमिनार सभागार में सम्पन्न हुआ।
कार्यक्रम के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ आलोचक डॉ0 इंदीवर पांडेय,
मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता पूर्व कुलपति लखनऊ विश्वविद्यालय, समाज सेविका एवं साहित्यकार डॉ0 रूपरेखा वर्मा,विशिष्ट अतिथि एवं विशेष वक्ता साहित्यकार श्री सत्येंद्र कुमार रघुवंशी,विशिष्ट अतिथि एवं वक्ता डॉ0 रीता चौधरी एवं लेखक शीला पांडे ने पुस्तक पर अपने – अपने विचार व्यक्त किये।
कार्यक्रम का संचालन डॉ0 अजीत प्रियदर्शी ने किया।कार्यक्रम का प्रारम्भ दीप प्रज्जवलन वाणी वंदना से हुआ।स्वागत वक्तव्य डॉ0 रविशंकर पाण्डेय ने दिया।
डॉ0 रूपरेखा वर्मा ने पुस्तक पर अपना मत रखते हुए कहा कि शीला पांडे की पुस्तक “अपने हिस्से का युद्ध” विभिन्न स्तरों पर स्त्रियों के जीवन की विषमताओं और इन विषमताओं से उपजे संघर्षों को उजागर करती है।
पुस्तक का हर अध्याय स्त्री के आंतरिक संसार को उजागर करता है और पुरुष वर्चस्व को खंडित करने की आवाज़ उठाता है।कई शाब्दियों से इस तरह के स्वर तरह -तरह से मुखर हो रहे हैं।ये अच्छा है कि महिलायें अपनी ज़िंदगी का इतिहास ख़ुद लिख रही हैं अपनी बाधाओं को पहचान रही हैं।और भी बेहतर होता अगर उस मानसिक और सामाजिक संरचना का भी विश्लेषण होता जिसके कारण पुरुष बनाम स्त्री का अस्वस्थ “युद्ध” शुरू कर दिया जाता है और ये पहचाना जाता कि वास्तव में पुरुष से नहीं वरन उस संरचना से ही हमें लड़ना है।
कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ0 इंदीवर पाण्डेय ने ‘अपने हिस्से का युद्ध’ पुस्तक पर चर्चा करते हुए कहा कि शीला पांडे जीवन की अनुभूतियों को आत्मसात करने वाली और उसे अभिव्यक्त करने वाली एक प्रबुद्ध लेखिका हैं उनके लेखन का मूल विषय सामाजिक सरोकारों के विश्लेषण का है।
उन्होंने अपने गीतों में,आलेखों में, और वाचिक अभिव्यक्ति में स्त्री- जीवन की विडंबनाओं को हमेशा उकेरा है।
यह किताब ‘अपने हिस्से का युद्ध’ स्त्री-विमर्श की दिशा में विचार और विश्लेषण का एक अभिनव प्रयास है। इस पुस्तक में शीला ने स्त्री-विमर्श की नई अवधारणा प्रस्तुत की है।
उन्होंने स्त्री- विमर्श को परिभाषित करते हुए बताया है कि स्त्री विमर्श का अर्थ उसके विचारों एवं उसकी मानसिकता की सूक्ष्म तत्वों की समझ है।उसे न समझ पाना और बिना समझे अपनी ही बनाई हुई पुरुष प्रधान जड़ व्यवस्था की जकड़बन्दी में स्त्री को ले चलने का प्रयास उसके साथ मानसिक प्रताड़ना है जिसके निशान दिखाई नहीं पड़ते लेकिन उसके समूचे जीवन में कैंसर की तरह घाव करते रहते हैं।
श्री सत्येंद्र कुमार रघुवंशी ने कहा कि अपनी पुस्तक ‘अपने हिस्से का युद्ध’ में लेखिका शीला पाण्डे आधी आबादी के जुझारूपन,अस्मिता-बोध और स्वतन्त्रचेता मन की बात करती हैं और तार्किक एवं असरदार ढंग से उन मुद्दों को उठाती हैं जिनकी ओर पुरुष-समाज का ध्यान शिद्दत से जाना चाहिए।
स्त्री-जीवन की कठिनाइयों और समाज-जनित गुत्थियों में झाँकती हुई वह स्त्री-सामर्थ्य के अर्जन पर ज़ोर देती हैं। स्त्री-जगत् के संघर्ष और जिजीविषा-बोध को इतने व्यापक फलक पर व्यवहृत करना आसान नहीं था।इस कार्य को लेखिका ने एक तेवर और एक अपूर्व धैर्य के साथ अंजाम दिया है जिसके परिणामस्वरूप एक सुचिन्तित और विचारोत्तेजक पुस्तक सामने आयी है। इस महत्वपूर्ण लेखन हेतु लेखिका बधाई की पात्र है।
डॉ0 रीता चौधरी ने पुस्तक का उल्लेख करते हुए कहा कि यह पुस्तक साधारण दिखते हुए भी यह एक असाधारण और बहुत महत्वपूर्ण पुस्तक है जिसमें क्रांति के तेवर विद्यमान हैं।इस पुस्तक में लेखिका ने जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त एक स्त्री के जीवन में आने वाली सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक चुनौतियों का विस्तृत उल्लेख किया है और हर एक अवस्था में उन चुनौतियों का सामना करते हुए स्त्री जाति का किस प्रकार सशक्तिकरण किया जा सकता है,इस पर बड़े ही संवेदनशील और बोल्ड टीप्पणी की हैl
यह पुस्तक आज के समय और परिस्थितियों में एक चुनौती है ।
पुस्तक की लेखिका शीला पांडे ने ‘अपने हिस्से का युद्ध’ पुस्तक से कुछ अंश पढ़कर सुनाये “बहुमूल्य सिक्के अपनी – अपनी तिजोरियों में बन्द हैं जिस दिन ये बाजार में समूहिकता से उतार दिए गये, तो आधिपत्य और कारोबार में शीर्ष फलन स्वयं स्त्रियों की झोली में आ गिरेगा। ”
तत्पश्चात डॉ0 अजित प्रियदर्शी ने कहा कि ‘ शीला पांडेय की यह किताब पुरुष प्रधान वर्चस्ववादी सोच और उससे उत्पन्न अन्याय एवं शोषण के विरुद्ध स्त्री को स्वतंत्रता ,सामाजिक समानता, न्याय, शिक्षा और कार्यक्षेत्र में आगे बढ़ने के समान अवसरों के लिए संघर्ष का आह्वान करती है।
विभिन्न आलेखों के माध्यम से लेखिका ने समाज में स्त्रियों की दशा का बेहद सटीक और मार्मिक चित्रण करते हुए ‘स्वतंत्र चेता स्त्री’ के पक्ष में अकाट्य तर्क प्रस्तुत किए हैं।
इस अवसर पर कुमकुम शर्मा ने ‘अपने हिस्से का युद्ध’ पुस्तक पर व्यंग्यकार डॉ अरविन्द तिवारी द्वारा लिखकर भेजी गयी सम्मति को पढ़ा।
कार्यक्रम के अन्त में लेखिका शीला पांडे ने सभी गणमान्य अतिथियों का सादर धन्यवाद ज्ञापित किया।
कार्यक्रम में नगर के सभी गणमान्य प्रबुद्ध वर्ग वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना, जनसंदेश टाइम्स के संपादक,कवि एवं लेखक डॉ0 सुभाष राय,
लमही के संपादक डॉ0 विजय राय, कथाक्रम के संपादक श्री शैलेन्द्र सागर,उपन्यासकर डॉ0 सुधाकर अदीब,वरिष्ठ अधिकारी डॉ0 दीपा तिवारी, नवगीतकार एवं गज़लकार डॉ0 राजेंद्र वर्मा, पूर्व वरिष्ठ अधिकारी आकाशवाणी श्री प्रतुल जोशी, उपन्यासकर डॉ0 रजनी गुप्त,अलग दुनिया के अध्यक्ष श्री के के वत्स,उत्तर प्रदेश जिला मान्यता प्राप्त पत्रकार एसोसिएशन के महामंत्री अब्दुल वहीद,प्रसिद्ध एक्टिवस्ट एवं लेखक नाइस हसन, श्री अरुन सिंह,
डॉ0 दिनेश चंद्र अवस्थी,
अनीता श्रीवास्तव, रामशंकर वर्मा, सुनील कुमार वाजपेयी आदि उपस्थित रहे।साथ ही तमाम दर्शकों,पाठकों और श्रोताओं से सभागार अंत तक भरा रहा।

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